नोएडा की वंतिका अग्रवाल ने शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया
नोएडा की बेटी वंतिका अग्रवाल ने हंगरी की राजधानी बुडापेस्ट में आयोजित 49वें शतरंज ओलंपियाड में शानदार प्रदर्शन करते हुए स्वर्ण पदक जीता है। उन्होंने न केवल व्यक्तिगत स्पर्धा में कमाल का प्रदर्शन किया, बल्कि अपनी महिला टीम को भी खिताब जितवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह उनकी लगातार मेहनत और समर्पण का परिणाम है, जिसने उन्हें इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता में सफलता दिलाई।
वंतिका का अद्वितीय सफर
वंतिका अग्रवाल ने 2020 में भी शतरंज ओलंपियाड में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम का हिस्सा रही थीं। इस बार उन्होंने बोर्ड-4 पर खेलते हुए स्वर्ण पदक अपने नाम किया। भारत की महिला और पुरुष टीमों ने पहली बार दोनों वर्गों के खिताब जीतकर इतिहास रचा है। उनके अलावा, बोर्ड-1 पर डी गुकेश, तीसरे बोर्ड पर ई. अरुण और महिलाओं के बोर्ड-3 पर दिव्या देशमुख ने भी स्वर्ण जीते।
वंतिका की सफलता में उनकी मां संगीता अग्रवाल की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही है। पेशे से चार्टर्ड अकाउंटेंट, संगीता ने हमेशा अपनी बेटी के खेल प्रबंधन की जिम्मेदारी निभाई है। वह हर टूर पर वंतिका के साथ रहती हैं और मां होने के साथ-साथ उनकी मैनेजर भी हैं। वंतिका बताती हैं, “मेरी मां हमेशा मेरा हौसला बढ़ाती हैं। हार पर वह मुझे गले लगाकर दिलासा देती हैं।”
खेल के प्रति जुनून
वंतिका ने साढ़े सात साल की उम्र में पहली बार चेस बोर्ड को छुआ था। उनके पिता आशीष अग्रवाल ने स्कूल के दिनों में उन्हें चेस बोर्ड दिया था, लेकिन उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि उनकी बेटी इस खेल में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करेगी। वंतिका ने 2011 में अंडर-9 एशियन गर्ल्स टूर्नामेंट के दौरान 102 डिग्री बुखार के बावजूद खेलते हुए खिताब जीता था, जो उनके जुनून को दर्शाता है।
वंतिका रोजाना आठ घंटे शतरंज की प्रैक्टिस करती हैं और बैडमिंटन भी खेलती हैं। वह सुबह एक घंटा योग करती हैं और स्कूल जाने के समय चार घंटे प्रैक्टिस के लिए निकालती थीं। उनकी मेहनत का फल अब सभी के सामने है, जब उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है।
वंतिका को पिछले साल 11वीं अंतरराष्ट्रीय महिला मास्टर का खिताब मिला था और उन्होंने एशियन चैंपियनशिप में भी शानदार प्रदर्शन किया था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन्हें सम्मानित किया और 1.5 करोड़ रुपये का चेक देने के साथ सरकारी नौकरी भी दी थी। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी उनकी उपलब्धियों को सराह चुके हैं।