नोएडा और ग्रेटर नोएडा में बॉयो सीएनजी प्लांट का निर्माण दीपावली के बाद शुरू होगा
नोएडा और ग्रेटर नोएडा से निकलने वाले गीले कचरे से बॉयो सीएनजी बनाने का प्लांट दीपावली के बाद स्थापित किया जाएगा। ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण ने अस्तौली की जमीन पर इस प्लांट का निर्माण करने वाली कंपनी के चयन की प्रक्रिया पूरी कर ली है। रिलायंस कंपनी प्रतिदिन 300 टन कचरे से वाहनों के लिए बॉयो सीएनजी गैस का उत्पादन करेगी, जिससे स्थानीय लोगों को गीले कचरे की समस्या से राहत मिलेगी।
प्लांट की विशेषताएँ और निवेश
इस अत्याधुनिक प्लांट के निर्माण में रिलायंस कंपनी 80 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। प्राधिकरण के अनुसार, गीले कचरे को प्रोसेस करके बायो सीएनजी में बदलने से रोड रेडी बायो फ्यूल बनाने की प्रक्रिया को गति मिलेगी। इस प्लांट में बनने वाली कंप्रेस्ड बायो गैस को इंडियन स्टैंडर्ड नार्मस (बीआईएस) और पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव्स सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (पेसो) के गैस सिलिंडर फिलिंग मानकों का पालन करना होगा।
ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में कूड़े के निस्तारण के लिए अस्तौली में एक सेनेटरी लैंडफिल साइट का भी निर्माण किया जा रहा है। इससे क्षेत्र में कूड़े का पूरी तरह से निस्तारण किया जा सकेगा।
अन्य संबंधित परियोजनाएँ
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि अस्तौली में एनटीपीसी द्वारा 600 टन प्रतिदिन क्षमता का आरडीएफ प्लांट पहले से ही लगाया जा रहा है, जिससे आरडीएफ (एक प्रकार का तारकोल) बनाया जाएगा। यह प्लांट नोएडा और ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी दोनों के उपयोग के लिए स्थापित किया जा रहा है।
ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी ने बायोसीएनजी प्लांट लगाने के लिए जून में आरएफपी जारी किया था, जिसमें आठ कंपनियों ने भाग लिया था। इन कंपनियों ने विभिन्न प्रस्ताव दिए थे, जिसके बाद रिलायंस कंपनी को फाइनेंशियल बिड में 80 करोड़ की लागत से बायोसीएनजी प्लांट लगाने की जिम्मेदारी दी गई।
स्थानीय विकास और पर्यावरणीय लाभ
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के ओएसडी इंदु प्रकाश ने बताया कि रिलायंस कंपनी को प्लांट की जिम्मेदारी सौंपी गई है, और यह कंपनी जल्द ही बायोसीएनजी प्लांट लगाएगी। इस परियोजना से न केवल स्थानीय लोगों को गीले कचरे की समस्या से राहत मिलेगी, बल्कि इससे पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।
बॉयो सीएनजी उत्पादन की प्रक्रिया न केवल ऊर्जा उत्पादन में सहायक होगी, बल्कि यह कृषि अवशेषों और अन्य जैविक अपशिष्टों का उपयोग करके कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद करेगी। इससे एक स्वच्छ और हरित वातावरण बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सकेगा।